Friday, March 15, 2019

Great Businessman MR. Dhirubhai Ambani


धीरूभाई के बिजनेस का तरीका जिसमें अरब के शेख को हिंदुस्तान की मिट्टी बेच दी

हमारे देश में लोग कहते हैं कि रिलायंस देश के उद्योगों का वो बुलबुला है जिसमें फूटकर छा जाने की कूवत है. मैं कहता हूं कि मैं वो बुलबुला हूं जो फूट चुका है.
-धीरूभाई अंबानी ने एक प्रेस कांफ्रेंस में मुस्कुराते हुए कहा था

कई लोगों ने इसे धीरूभाई का एरोगेंस कहा था. आलोचकों ने कहा कि ये ज्यादा दिन नहीं चलने वाला. शक्की लोगों ने कहा कि बस ये बर्बाद होने वाला है. पर 2016 में रिलायंस देश का सबसे बड़ा उद्योग घराना है. इस देश के उद्योग के लिए अंबानी का नाम एक होप का नाम है. इस नाम के आते ही तमाम संशय, विवाद, आरोप सामने आ जाते हैं. पर एक तथ्य ये भी है कि सब कुछ होते हुए अपनी क्षमता को साबित करने का अंदाज भी यहां से आता है.

60 के दशक में धीरूभाई ने 15 हजार रुपयों से रिलायंस कामर्शियल कॉर्पोरेशन शुरू किया. ये इनका पहला बड़ा वेंचर था. 1967 में 15 लाख रुपयों से रिलायंस टेक्सटाइल्स शुरू किया. रिलायंस के पास इन्वेस्टर बहुत ज्यादा हैं. सबसे ज्यादा डिविडेंड पे करने वाली कंपनियों में है रिलायंस. देश में हर फर्स्ट चीज रिलायंस के हाथ में आती है. ये आरोप भी बन जाता है. पर ये तथ्य है कि किसी के इन्वेस्ट करने के लिए रिलायंस सबसे अच्छी कंपनियों में से एक है.

जीप खरीदने की तमन्ना थी, कंपनी खड़ी कर ली

गुजरात के जूनागढ़ में पैदा हुए थे. वही शहर जो एक समय हिंदुस्तान से अलग ही रहना चाहता था. हाईस्कूल करने तक यही तमन्ना थी कि जीप या कार हो जाए पास में. इसीलिए शायद इसके आगे पढ़े ही नहीं. लगा होगा कि ज्यादा पढ़ने से यही सोचते रह जाएंगे. बाद में अदन चले गये. एक कंपनी में क्लर्क बनकर. फ्रेंच फर्म थी जो शेल ऑयल के साथ काम करती थी. धीरूभाई को रिटेल मार्केटिंग में डाल दिया गया. एरिट्रिया, जिबौती, सोमालीलैंड, केन्या और यूगांडा तक का काम देखते थे. धीरूभाई इसके बारे में कहते थे-‘मजा आती थी.’

धीरूभाई ने खुद कहा है कि वहीं पर उनको एंटरप्रेन्योरशिप का कीड़ा काट गया. बंबई चले आए. भात बाजार में ऑफिस खोल लिया. अदन में कॉन्टैक्ट बनाये ही थे. जिंजर, कार्डेमम, टर्मरिक और मसाले एक्सपोर्ट करने लगे. पर एक मजेदार चीज भी भेजते थे. सऊदी अरब का एक शेख अपने यहां गुलाब गार्डेन बनवाना चाहता था. उसे मिट्टी चाहिए थी. और धीरूभाई किसी को ना नहीं कहते थे.

पान खाते हुए और चाय पीते हुए धीरूभाई ने बंबई के यार्न उद्योग पर कब्जा जमा लिया. इनको पक्का गुजराती बनिया कहा जाता था. अनिल अंबानी याद करते हैं कि परिवार बंबई की एक खोली में रहते थे. एक कमरे में. दोनों भाई उन्हीं गलियों में खेलते थे. 1967 में जब धीरूभाई ने कंपनी खोली तो उनके पास उतने पैसे नहीं थे. तो उन्होंने वीरेन शाह की मदद मांगी थी. वीरेन की मुकंद आयरन एंड स्टील कंपनी थी. पर शाह ने मना कर दिया था. उनको लगा कि ये प्रोजेक्ट नहीं चलेगा.

कहानी बनी कि धीरूभाई जिस चीज को छू दें, सोना हो जाये, पर काला करने के भी आरोप लगे

पर धीरूभाई को इस तरह की चीजों से खेलने की आदत थी. पैसा जुटा. कंपनी लगी. 1977 में रिलायंस पब्लिक लिमिटेड कंपनी बनी. शेयर पब्लिक के लिए खुले तो डर इतना था कि इन्वेस्टर ही हाथ नहीं लगा रहे थे इसमें. उनके मित्र डी एन श्राफ अपने जानकारों को समझा रहे थे कि लाख रुपये का शेयर खरीद लो यारों. पर किसी ने नहीं खरीदा.

कुछ लोग ऐसे भी थे जो मानते थे कि धीरूभाई जिस चीज को छू देते हैं, सोना हो जाता है. तो काम चल पड़ा. रेयॉन और नायलॉन इंपोर्ट और एक्सपोर्ट होने लगा. देश में कहीं बनता नहीं था. तो प्रॉफिट बहुत होता था. पर इसी में आरोप लगा था कि धीरूभाई कानून तोड़ते हैं. ब्लैक मार्केटिंग करते हैं. धीरूभाई ने मीटिंग बुलाई और पूछा- “You accuse me of black marketing, but which one of you has not slept with me?” लोगों के पास इसका जवाब नहीं था. क्योंकि सबने धीरूभाई के साथ बिजनेस किया था.

आरोप लगते रहे कि धीरूभाई के पास कुछ तो है जिसकी मदद से वो हर लाइसेंस निकलवा लेते हैं. अपने राइवल्स को ऊपर नहीं उठने देते. पर धीरूभाई का क्लियर था कि कोई भी ऐसा दिखा दो जिसने मुझसे ज्यादा ईमानदारी से काम किया हो. 1982 में रिलायंस पॉलीएस्टर यार्न बनाने वाला था. डाई मिथाइल टेरीथैलेट से. राइवल कंपनी ओर्के सिल्क मिल्स भी पॉलीएस्टर चिप्स से यार्न बनाने वाली थी. पर उसी साल सरकार ने चिप्स पर इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ा दी थी. ओर्के को समस्या हो गई.

इसका जवाब दिया धीरूभाई ने, सच तो यही है कि यूं ही कोई बड़ा नहीं हो जाता 

नवंबर 1982 में रिलायंस पॉलीएस्टर यार्न बनाने लगा. अब यार्न इंपोर्ट कराने पर टैक्स बढ़ गया. तो अंबानी को फायदा मिल गया. बेचने में. वैसे केस बहुत ज्यादा हुए हैं. अंबानी ने इसकी सफाई भी दी. पर ये बहुत कुछ क्लियर नहीं कर पाए. उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी और आर के धवन से नजदीकी होने का मुझे फायदा तो नहीं मिलेगा. एक लोअर लेवल का अफसर भी कोई प्रोजेक्ट रोक सकता है. कोई कुछ नहीं कर पाएगा. पर इसके साथ ही एक चीज और हुई थी. 1980 में लोकसभा चुनाव के बाद धीरूभाई ने पार्टी की थी. इसमें इंदिरा गांधी भी आई थीं. एक और खबर लीक हुई थी. कि एक जॉइंट सेक्रेटरी को धवन का फोन आया कि अंबानी का लाइसेंस रुका क्यों हुआ है. कुछ देर बाद दुबारा फोन आया.

अंबानी कहते थे- आपको अपना आइडिया सरकार को बेचना पड़ता है. फिर दिखाना पड़ता है कि कंपनी का प्लान देश हित में है. सरकार जब कहती है कि पैसा नहीं है तो हम कहते हैं कि ठीक है हम फाइनेंस कर देते हैं. अंबानी के एक दोस्त ने एक बार कहा था- कोई भी गरीब आदमी अगर पैसा जल्दी बनाये तो जो सीढ़ी यूज करता है वो क्लीन तो नहीं ही होती है. पर अगर कोई ये सोचता है कि धीरूभाई ने सिर्फ यही कर के पैसा बनाया है तो गलत सोचता है. सच तो ये है कि धीरूभाई ने जो तरीके इस्तेमाल किये वो बाकी बिजनेसमैन नहीं कर पाये. पीछे रह गये.

धीरूभाई अंबानी की सैकड़ों कहानियां हैं. ये देखने वाले पर निर्भर करता है कि वो क्या चुनता है. हर कहानी की तरह इसमें सच-झूठ, सही-गलत, देर-सबेर सब कुछ है.

(ये स्टोरी इंडिया टुडे के एक पुराने अंक से ली गई है)

source :- taken from internet

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